
१. पिंडीको स्नान कराना
२. शिवपिंडी पर हलदी-कुमकुम चढाने की अपेक्षा पिंडी को भस्म क्यों लगाएं ?
३. शिवपूजन में अन्य एक महत्त्वपूर्ण घटक है, श्वेत अक्षत
४. शिवपूजनमें प्रयुक्त पुष्प
५. शिवपूजनमें सबसे महत्त्वपूर्ण तथा शिवजी को प्रिय घटक है बिल्वपत्र
६. शिवपिंडी पर बिल्वपत्र चढाने की पद्धति तथा बिल्वपत्र तोड़ने के नियम
७. बिल्वपत्रका सूक्ष्म-चित्र
८. बिल्वपत्रका अनिष्ट शक्तियों पर होने वाला सू्क्ष्म परिणाम
१. पिंडी को स्नान कराना
शिवजी की पिंडी को ठंडे जल, दूध एवं पंचामृतसे स्नान कराते हैं । चौदहवीं शताब्दि से पूर्व शिवजी की पिंडीको केवल जलसे स्नान करवाया जाता था; दूध एवं पंचामृतसे नहीं । दूध एवं घी ‘स्थिति’ के प्रतीक हैं, इसलिए ‘लय’ के देवता शिवजी की पूजा में उनका उपयोग नहीं किया जाता था । चौदहवीं शताब्दि में दूध को शक्ति का प्रतीक मानकर प्रचलित पंचामृत स्नान, दुग्धस्नान इत्यादि अपनाए गए । किसी भी देवता पूजन में मूर्ति को स्नान करानेके उपरांत हलदी-कुमकुम चढाया जाता है । परंतु शिवजी की पिंडी की पूजामें हलदी एवं कुमकुम निषिद्ध माना गया है ।
२. शिवपिंडी पर हलदी-कुमकुम चढाने की अपेक्षा पिंडी को भस्म क्यों लगाएं ?
हल्दी मिट्टीमें उगती है । यह उत्पत्ति का प्रतीक है । कुमकुम भी हल्दी से ही तैयार होता है, इसलिए वह भी उत्पत्तिका ही प्रतीक है । शिवजी ‘लय’के देवता हैं, इसीलिए ‘उत्पत्ति’के प्रतीक हल्दी-कुमकुम का प्रयोग शिवपूजन में नहीं किया जाता । शिवपिंडी पर भस्म लगाते हैं, क्योंकि वह लय का द्योतक है । पिंडी के दर्शनीय भाग से भस्म की तीन समांतर धारियां बनाते हैं । उन पर मध्य में एक वृत्त बनाते हैं, जिसे शिवाक्ष कहते हैं ।
३. शिव पूजन में अन्य एक महत्त्वपूर्ण घटक है, श्वेत अक्षत
श्वेत अक्षत वैराग्य के, अर्थात निष्काम साधना के द्योतक हैं । श्वेत अक्षत की ओर निर्गुण से संबंधित मूल उच्च देवताओं की तरंगें आकृष्ट होती हैं । शिवजी एक उच्च देवता हैं तथा वे अधिकाधिक निर्गुण से संबंधित है । इसलिए श्वेत अक्षत पिंडी के पूजन में प्रयुक्त होने से शिवतत्त्व का अधिक लाभ मिलता है ।
४ शिव पूजन में प्रयुक्त पुष्प
शिवजीको श्वेत रंग के पुष्प ही चढाएं । उनमें रजनीगंधा, जुही एवं बेला के पुष्प अवश्य हों । ये पुष्प दस अथवा दस की गुना में हों तथा इन पुष्पों को चढाते समय उनका डंठल शिवजी की ओर रखकर चढाएं । पुष्पों में धतूरा, श्वेत कमल, श्वेत कनेर, आदी पुष्पों का चयन भी कर सकते हैं ।
५. शिवपूजनमें सबसे महत्त्वपूर्ण तथा शिवजी को प्रिय घटक है बिल्वपत्र
अथर्ववेद, ऐतरेय एवं शतपथ ब्राह्मण, इन ग्रंथोंमें बिल्व वृक्षका उल्लेख आता है । यह एक पवित्र यज्ञीय वृक्ष है । ऐसे पवित्र वृक्षका पत्ता सामान्यतः त्रिदलीय होता है । यह त्रिदल बिल्वपत्र त्रिकाल, त्रिशक्ति तथा ओंकार की तीन मात्रा इनके निदर्शक हैं ।
६. शिवपिंडी पर बिल्वपत्र चढाने की पद्धति तथा बिल्व पत्र तोडने के नियम
बिल्ववृक्ष में देवता निवास करते हैं । इस कारण बिल्ववृक्ष के प्रति अतीव कृतज्ञता का भाव रखकर उससे मन ही मन प्रार्थना करनेके उपरांत उससे बिल्व पत्र तोडना आरंभ करना चाहिए। शिवपिंडी की पूजा के समय बिल्वपत्र को औंधे रख एवं उसके डंठल को अपनी ओर कर पिंडी पर चढाते हैं। शिवपिंडी पर बिल्वपत्र को औंधे चढाने से उससे निर्गुण स्तरके स्पंदन अधिक प्रक्षेपित होते हैं । इसलिए बिल्वपत्रसे श्रद्धालु को अधिक लाभ मिलता है । सोमवार का दिन, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी तथा अमावस्या, ये तिथियां एवं संक्रांति का काल बिल्वपत्र तोडने के लिए निषिद्ध माना गया है । बिल्वपत्र शिवजी को बहुत प्रिय है, अतः निषिद्ध समयमें पहले दिनका रखा बिल्वपत्र उन्हें चढा सकते हैं । बिल्वपत्र में देवता तत्त्व अत्यधिक मात्रा में विद्यमान होता है । वह कई दिनों तक बना रहता है ।
७. बिल्वपत्र का सूक्ष्म-चित्र
अ. निर्गुण शिवतत्त्व बिल्वपत्र की ओर आकृष्ट होता है ।
आ. इससे बिल्वपत्र के हर एक पत्ते में त्रिगुणात्मकता की बहिर्गामी सर्पचक्राकार तरंगें कार्यरत होती हैं ।
इ. बिल्वपत्र से शक्ति के कार्यरत स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं।
ई. साथ ही शांति के कणों का भी प्रक्षेपण होता है।
८. बिल्वपत्र का सू्क्ष्म परिणाम
बिल्वपत्रमें सात्त्विकता की मात्रा अधिक होनेके कारण सात्त्विक तरंगोंको ग्रहण एवं प्रक्षेपित करने की उसकी क्षमता अधिक होती है । यह एक सूक्ष्म स्तरपर अर्थात आध्यात्मिक स्तरपर होनेवाली प्रक्रिया है । इसका परिणाम विविध प्रकारसे होता है । इनमेंसे एक है, वातावरणमें विद्यमान रज-तम प्रधान तत्त्वों का प्रभाव कम होना ।
अ. ब्रह्ममंडल में विद्यमान शिवस्वरूप चैतन्य की निर्गुण-सगुण तरंगें बिल्वपत्र मे आकृष्ट होती है ।
आ. बिल्वपत्र में शांति विद्यमान होती है।
इ. बिल्वपत्र से धूसर रंगके निर्गुण शिवतत्त्वके वलयों का प्रक्षेपण होता है।
ई. वातावरण में चैतन्यके वलयों का भी प्रक्षेपण होता है ।
उ. वातावरण में शक्तिके कणों का प्रक्षेपण होता है ।
:- पंडित मनोज शुक्ला,
पंडित भूषण शुक्ला, माँ महामाया मंदिर रायपुर