
रायपुर – 6 अगस्त 2020 – छत्तीसगढ़ की माताये , अपनी संतान की समृद्धि और लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती है। वैसे तो हिन्दू धर्म में कई व्रत और त्यौहार हैं, पर इस अंचल में दो ही व्रत ऐसे हैं जिन पर महिलाओं की सबसे ज्यादा आस्था है। एक है पति के लिये तीजा और दूसरा संतान के लिये कमरछट।
हलषष्ठी के व्रत की पूजन विधि और इसके नियम शुरू से सबके कौतुहल का विषय रहे हैं।
इस व्रत के नियम …
आज के दिन भैंस के अलावा किसी भी अन्य जानवर का दूध व दुग्ध उत्पाद महिलाओं के लिए वर्जित होता है, चाय भी वो भैंस के दूध से बनी ही पी सकती हैं।
महिलाओं का किसी भी ऐसे स्थान पर जाना वर्जित होता है जहां हल से काम किया जाता हो, यानि खेत, फॉर्म हाउस, यहां तक की अगर घर के बगीचे में भी यदि हल का उपयोग होता है तो वहां भी जाना वर्जित है।
आज के दिन महिलाएं टूथ-ब्रश और पेस्ट की बजाये पलास पेड की लकडी का दातुन करती हैं, पलास ,ग्रामीण अंचल व जंगलों में पाया जाने वाले पेड़ की एक प्रजाति है।
सभी महिलाएं मध्यान्ह के समय एक जगह एकत्रित होती हैं, वहां पर आंगन में गड्ढा खोदकर कृत्रिम तालाब बनाया जाता है जिसे *सगरी* कहा जाता है।
मातायें अपने-अपने घरों से मिटटी के खिलौने ,शिवलिंग, गौरी- गणेश , कार्तिकेय , नन्दी बनाकर लाती हैं जिन्हें उस सगरी के किनारे पूजा के लिए रखा जाता है। कलश भी रखा जाता है।
उस सगरी में बेल पत्र, भैंस का दूध, दही, घी, फूल, कांसी के फूल, श्रींगार का सामान, लाई और महुए का फूल चढ़ाया जाता है, महिलाएं एक साथ बैठकर हलषष्ठी माई की पूजा करती है तथा प्रचलित कथाएँ सुनती हैं।
उसके बाद शिव जी की व हलषष्ठी देवी की आरती के साथ पूजन समाप्त होता है।
पूजा के बाद माताएं नए कपडे का टुकड़ा सगरी के जल में डुबाकर घर ले जाती हैं और अपने बच्चों के कमर पर से छह बार छुआति हैं, इसे पोती मारना कहते हैं।
पूजा के बाद बचे हुए लाई, महुए और नारियल को महिलाएं प्रसाद के रूप में एक दूसरे को बांटती हैं और अपने- अपने घर लेकर जाती हैं।
घर पहुंचकर, महिलाएं फलाहार की तैयारी करती हैं। फलाहार के लिए पसहर का चावल भगोने में बनाया जाता है, इस दिन कलछी का उपयोग खाना बनाने के लिए नहीं किया जाता, पलास की लकड़ी को चम्मच के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।
छह प्रकार की भाजियों को मिर्च और पानी में पकाया जाता है, भैंस के घी का प्रयोग छौंकने के लिए किया जा सकता है पर आम तौर पर नहीं किया जाता।
इस भोजन को पहले छह प्रकार के जानवरों के लिए जैसे कुत्ते, पक्षी, बिल्ली, गाय, भैंस और चींटियों के लिए दही के साथ पलास के पत्तों में परोसा जाता है। फिर व्रत करने वाली मातायें भी पलाश के पत्ते पर ही भोजन करती है। नियम के अनुसार सूर्यास्त से पहले भोजन कर लेना चाहिए।
पूजा सामग्री
समस्त पूजन सामग्री , लाई, पसहर चावल, महुआ, झरबेरी, कांसी का फुल आदि
हलषष्ठी पूजन कथा
पूरे भारत वर्ष में हलषष्ठी का व्रत , भादो मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण जी के ज्येष्ठ भ्राता श्री बलराम जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
हल को वे अपने अस्त्र के रूप में कँधे पर धारण किये रहते थे इसलिये उनको हलधर भी कहा जाता है। उन्ही के नाम पर इस पर्व का नाम हलषष्ठी पड़ा।
इसलिय पूजा के बाद व्रत पारणा में भी हल चले धरती से उपजे अन्न का उपयोग नहीं किया जाएगा। न ही हल चले स्थानो पर जाया जाता है।
:- पण्डित मनोज शुक्ला
माँ महामाया मन्दिर रायपुर 7804922620